साड़ी

साड़ी एक सबसे सुंदर पारंपरिक पोशाक है भारतीय। दैनिक दिनचर्या साड़ी में भारत के उत्तर से एक घरेलू भारतीय महिला, अच्छी तरह से बाँधी एवं पहनी हुई

साड़ी भारतीय स्त्री का मुख्य परिधान है। यह शायद विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में से गिना जाता है। यह लगभग 5 से 6 गज लम्बी बिना सिली हुए कपड़े का टुकड़ा होता है जो ब्लाउज़ या चोली और साया के ऊपर लपेटकर पहना जाता है।

कर्नाटक में महिलाओं ने कोडागु स्टाइल की साड़ी पहनी.

तरह-तरह की साड़ियाँ[संपादित करें]

साड़ी पहनने के कई तरीके हैं जो भौगोलिक स्थिति और पारंपरिक मूल्यों और रुचियों पर निर्भर करता है। अलग-अलग शैली की साड़ियों में कांजीवरम साड़ी, बनारसी साड़ी, पटोला साड़ी और हकोबा मुख्य हैं। मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रशम, दिल्ली की रशमी साड़ियाँ, झारखंडी कोसा रशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियाँ, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियाँ हैं।

साड़ी

उदभव और इतिहास[संपादित करें]

साड़ी का इतिहास –

1 – साड़ी का उल्लेख वासस् व अधिवासस् के रूप में वेदों में मिलता है। यजुर्वेद में साड़ी शब्द का सबसे पहले उल्लेख मिलता है। दुसरी तरफ ऋग्वेद की संहिता के अनुसार यज्ञ या हवन के समय स्त्री को साड़ी पहनने का विधान भी है।

2 – साड़ी विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में एक है। इसकी लंबाई सभी परिधानों से अधिक है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

साड़ी पहनने के दिशा निर्देश[संपादित करें]


भारतीय परिधान
साड़ी | कुर्ता | धोती | शेरवानी | दुपट्टा | लहँगा | लुंगी | पगड़ी