मित्रता

दो मित्रों के बीच मित्रता
रूस के एक विवाह समारोह में भारतीय और रूसी के मैत्री ने सबको चौंका दिया

मैत्री या मित्रता या बन्धुत्व लोगों के बीच पारस्परिक स्नेह का सम्बन्ध है। यह एक सहपाठी, पड़ोसी, या सहकर्मी जैसे "परिचित" या "सहचर" की तुलना में पारस्परिक बन्धन का एक शक्तिशाली रूप है।

कुछ संस्कृतियों में, मैत्री की अवधारणा बहुत ही गहरे सम्बन्धों की एक छोटी संख्या तक सीमित है; दूसरों में, एक व्यक्ति के कई मित्र हो सकते हैं, और प्रायः एक या दो लोगों के साथ अधिक गहन सम्बन्ध हो सकते हैं, जिन्हें अच्छे या सबसे अच्छे मित्र कहा जा सकता है।अन्य बोलचाल की शर्तों में बेस्टीज़ या बेस्ट फ्रेंड्स फ़ॉरेवर शामिल हैं। यद्यपि मैत्री के कई रूप हैं, जिनमें से कुछ स्थानीय भिन्नता हो सकते हैं, ऐसे कई बन्धनों में कुछ विशेषताएँ होती हैं। ऐसी विशेषताओं में एक दूसरे के साथ रहना, एक साथ बिताए समय का आनन्द लेना और एक दूसरे के लिए सकारात्मक और सहायक भूमिका निभाने में सक्षम होना शामिल है।[1]

कभी-कभी मित्रों को परिवार से अलग किया जाता है, जैसा कि "मित्रगण और परिवार" कहा जाता है, और कभी-कभी प्रेमियों (जैसे, "प्रेमीगण और मित्रगण") से, यद्यपि लाभ वाले मित्रों के साथ रेखा धुंधली होती है। इसी प्रकार, मित्र क्षेत्र एक ऐसा शब्द है, जब किसी को प्रेमी के स्तर तक ऊपर उठने से प्रतिबन्धित किया जाता है।

संचार, समाजशास्त्र, सामाजिक मनोविज्ञान, नृविज्ञान और दर्शनशास्त्र जैसे शैक्षणिक क्षेत्रों में मैत्री का अध्ययन किया गया है। सामाजिक विनिमय सिद्धान्त, साम्य सिद्धान्त, सम्बन्धात्मक द्वन्द्वात्मकता और स्नेह सिद्धान्त सहित मैत्री के विभिन्न शैक्षणिक सिद्धान्तों का प्रस्ताव किया गया है।

मित्र के कर्तव्य[संपादित करें]

भारतीय मित्रगण

एक मित्र होने का अर्थ यह नहीं है कि आप किसी मजाक, बातचीत, एक चाय का कप या एक गुदगुदाती कहानी का हिस्सा बनें। बल्कि इसका मतलब है अपने सच्चे और ईमानदार हिस्से को साझा करना। मित्रता महज एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक बड़ा उत्तरदायित्व है जिसे दोनों पक्षों को स्वेच्छा से ओढना पड़ता है। मित्र का कर्तव्य इस प्रकार बताया गया है : "उच्च और महान कार्य में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर का काम कर जाओ।" [2]

मित्र चयन[संपादित करें]

हिंदी के आलोचक रामचंद्र शुक्ल मित्रों के चुनाव को सचेत कर्म बताते हुए लिखते हैं कि - "हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध ह्रदय के हों। मृदुल और पुरूषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सके कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा।" [3][4]

मनुष्यों और पशुओं के बीच मैत्री[संपादित करें]

एक व्यक्ति और एक गिलहरी की मैत्री

मैत्री उच्च बुद्धि वाले पशुओं में पाई जाती है, जैसे उच्च स्तनधारी और कुछ पक्षी। अन्तःप्रजातिय मैत्री मनुष्यों और पालतू पशुओं जैसे पालतू सर्प के बीच सामान्य है। अन्तःप्रजातिय मैत्री दो पशुओं, जैसे कुत्तों और बिल्लियों के बीच भी हो सकती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Howes, Carollee (1983). "Patterns of Friendship". Child Development. 54 (4): 1041–1053. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0009-3920. डीओआइ:10.2307/1129908.
  2. रामचंद्र शुक्ल- चिंतामणि
  3. रामचंद्र शुक्ल- चिंतामणी
  4. Pahwa, Varun. "Real Definition of a True Friend and their Characteristics (BONUS QUIZ)" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-11-29.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]