इला

इला ऋग्वेद में 'अन्न' की अधिष्ठातृ' मानी गई हैं, यद्यपि सायण के अनुसार उन्हें पृथिवी की अधिष्ठातृ मानना अधिक उपयुक्त है। वैदिक साहित्य में इला को मनु को मार्ग दिखलानेवाली एवं पृथ्वी पर यज्ञ का विधिवत् नियमन करनेवाली कहा गया है। इला के नाम पर ही जम्बूद्वीप के नवखंडों में एक खंड इलावृत वर्ष कहलाता है। महाभारत तथा पुराणों की परंपरा में इला को बुध की पत्नी एवं पुरूरवा की माता कहा गया है।

इल/इला

बुध अपनी पत्नी इला के संग (इला स्त्री रूप में)
जीवनसाथी बुध (पति)
  • वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए।
  • उनके एक पुत्री भी थी इला, जो बाद में पुरुष बन गई।
  • एक समय वैवश्वत मनु तथा उनकी पत्नी श्रद्धा ने संतानसुख की लालसा से मित्रावरुण नामक यज्ञ करवाया। देवी श्रद्धा ने होता ब्राह्मण को कहा कि मेरी इच्छा है कि मुझे कन्या हो, परंतु मनु तो पुत्र चाहते थे। समय में उन्हें पुत्रीरत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम इला रखा गया। मनु जी के आग्रह पर महर्षि वसिष्ठ जी ने बताया कि यज्ञ में गलती के कारण यह हुई है। वसिष्ठ जी ने योग से श्रीहरि को प्रसन्न किया जिससे वह इला नामक कन्या सुद्युम्न नामक बालक बन गई। कालांतर में एक समय यह राजकुमार सिंधुदेश के घोड़े पर सवार होकर कुछ मंत्रियों के साथ शिकार खेलने वन में गए। वे सब उत्तर में कुछ दूर मेरु पर्वत की तलहटी में चले गए। वहाँ भगवान शिव तथा पार्वती जी नग्नावस्था मे समागम कर रहे थे, वहाँ जब सुद्युम्न पहुँचा तो वह देख पार्वती जी ने सभी को स्त्री होनेका श्राप दिया । उसके बाद अपने मंत्रियों सहित स्त्री में बदल गया। चंद्रकुमार बुध से उसके पुत्र पुरुरवा का जन्म हुआ। बाद में वसिष्ठ जी ने भगवान शिव को प्रसन्न कर इला को पुन: सुद्युम्न में परिवर्तित कर दिया। भगवान शिव ने कहा कि हे वसिष्ठ! तुम्हारा यह यजमान एक माह के लिये स्त्री रहेगा तथा एक माह के लिये पुरुष होकर अपना राजकाज किया करेगा। श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षित को कहते हैं, कि इलावृतवर्ष का वह भूखण्ड श्रापित था। एक समय की बात है जब भगवान शिव तथा पार्वती उस इलावृतखण्ड में एकांतवास कर रहे थे, तभी वहाँ अकस्मात् ही कुछ मुनियों ने प्रवेश कर एकांतवास में विघ्न उत्पन्न किया। माता पार्वती ने कहा कि जो भी पुरुष इस भूभाग में प्रवेश करेगा वह स्त्री में परिवर्तित हो जाएगा। और तब से भगवान शिव तथा पार्वती वहाँ स्वतंत्र इच्छा अनुसार एकांतवास करते हैं। उसी भूखण्ड में सुद्युम्न का प्रवेश हुआ अत: वह स्त्री बन गया था।
  • कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया।
  • तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृद्धि की जिनके नाम इस प्रकार हैं- उत्कल, गय तथा विनताश्व।

सन्दर्भ[संपादित करें]