आंदोलन

1989 में जर्मनी का आन्दोलन

आंदोलन संगठित सत्ता तंत्र या व्यवस्था द्वारा शोषण और अन्याय किए जाने के बोध से उसके खिलाफ पैदा हुआ संगठित और सुनियोजित अथवा स्वतःस्फूर्त सामूहिक संघर्ष है। इसका उद्देश्य सत्ता या व्यवस्था में सुधार या परिवर्तन होता है। यह राजनीतिक सुधारों या परिवर्तन की आकांक्षा के अलावा सामाजिक, धार्मिक, पर्यावरणीय या सांस्कृतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी चलाया जाता है। उदाहरणस्वरूप चिपको आंदोलन पेड़ों की रक्षा के लिए चलाया गया आंदोलन है।

आंदोलन और संघर्ष[संपादित करें]

आंदोलन एक सामूहिक संघर्ष है। किंतु "संघर्ष और आंदोलन एक ही चीज़ नहीं है। संघर्ष रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। वर्गों में बँटे और शोषण पर टिके समाज में व्यक्ति हर रोज अनगिनत रूपों में संघर्ष करते हैं। यह संघर्ष व्यक्ति के सामूहिक या वर्ग संघर्ष का हिस्सा भी होता है। लेकिन, इन सबको आदोलन नहीं कहा जा सकता। आंदोलन, चाहे वह संगठित हो या स्वतःस्फूर्त, संघर्ष के विकास की एक अवस्था है जहाँ संघर्ष का स्वरूप आम हो जाता है; संघर्ष व्यक्तिगत नहीं रह जाता, सामूहिक हो जाता है।[1]

प्रमुख भारतीय आंदोलन[संपादित करें]

सविनय अवज्ञा आन्दोलन[संपादित करें]

  • दूसरे नाम: नमक आंदोलन, दांडी मार्च
  • समय: 12 मार्च 1930
  • मुख्य नेता: मोहनदास करमचंद गाँधी

भारत छोड़ो आन्दोलन[संपादित करें]

  • शुरुआत: अगस्त १९४२
  • मुख्य नेता: मोहनदास करमचंद गांधी
  • वजह: तुरंत आज़ादी
  • निष्कर्ष: विफल, १९४२ में आंदोलन का दमन

बारडोली सत्याग्रह[संपादित करें]

  • समय: १९२८
  • मुख्य नेता: सरदार वल्लभभाई पटेल
  • मुद्दा: नील की खेती और कर
  • निष्कर्ष: सफल

असहयोग आन्दोलन[संपादित करें]

  • समय अन्तराल:सितम्बर १९२० से फ़रवरी १९२२ तक चला
  • मुख्य मुद्दे: रोलट एक्ट, जलियावाला बाग काण्ड
  • समाप्ति की वजह: चौरी-चौरा काण्ड

संदर्भ सूची[संपादित करें]

  1. डॉ॰ वीर भारत तलवार- "किसान राष्ट्रीय आंदोलन और प्रेमचंद १९१८-१९२२ : प्रेमाश्रम और अवध के किसान आंदोलन का विशेष अध्ययन", वाणी प्रकाशन: नई दिल्ली, द्वितीय संस्करण २०१०, आइएसबीएन- ९७८-८१-८१४३-८६७-६, पृ ९३

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]