अराणमुला नौका दौड़
![]() अरणमूल उत्तरथत्ती नौका स्पर्धा | |
सबसे पहले खेला गया | १९७२, केरल |
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विशेषताएँ | |
दल के सदस्य | ४-६ |
वर्गीकरण | जल-क्रीड़ा |
उपकरण | पाल्लियोदम (सर्पनौका) |
अराणमुला नौका दौड़ भारत के दक्षिण-पश्चिमी राज्य केरल की सर्वप्राचीन नौका दौड़ है। इसका आयोजन ओणम पर्व के अवसर पर (लगभग अगस्त-सितंबर माह में) अराणमुला नामक स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण एवं अर्जुन को समर्पित एक मंदिर के निकट किया जाता है। स्पर्धा के दर्शकों द्वारा किये जाने वाले उच्चस्वरीय गान एवं कोलाहल से उत्साहवर्धन करते हुए नौकाएं जोड़ों में चलती हैं।[1] १९७२ में उत्सव के कार्यक्रम में नौका-स्पर्धा को भी जोड़ा गया था। इस सर्पनौका-स्पर्धा को देखने हेतु हज़ारों की संख्या में दर्शक पम्पा नदी के तटों पर खड़े रहते हैं। वर्ष २००९ में इक्तालीस सर्प नौकाएं, जिन्हें चुण्डन वल्लम कहा जाता है, ने सप्र्धा में भाग लिया था। नौका-चालक श्वेत मुण्डू एवं पगड़ियां बांधे परंपरागत नौका गीत गाते हुए नौका चालन करते हैं। नौका के अग्र-सिरे पर बंधी सुनहरी झालर, पताकाएं एवं नौका के मध्य भाग में लगी सजी धजी छतरियाँ उसकी छटा को चार चाँद लगाती हैं।
अरणमूल मन्दिर[संपादित करें]
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/2/2f/%E0%B4%86%E0%B4%B1%E0%B4%A8%E0%B5%8D%E0%B4%AE%E0%B5%81%E0%B4%B3_%E0%B4%B6%E0%B5%8D%E0%B4%B0%E0%B5%80_%E0%B4%AA%E0%B4%BE%E0%B5%BC%E0%B4%A4%E0%B5%8D%E0%B4%A5%E0%B4%B8%E0%B4%BE%E0%B4%B0%E0%B4%A5%E0%B4%BF%E0%B4%95%E0%B5%8D%E0%B4%B7%E0%B5%87%E0%B4%A4%E0%B5%8D%E0%B4%B0%E0%B4%82.jpg/300px-%E0%B4%86%E0%B4%B1%E0%B4%A8%E0%B5%8D%E0%B4%AE%E0%B5%81%E0%B4%B3_%E0%B4%B6%E0%B5%8D%E0%B4%B0%E0%B5%80_%E0%B4%AA%E0%B4%BE%E0%B5%BC%E0%B4%A4%E0%B5%8D%E0%B4%A5%E0%B4%B8%E0%B4%BE%E0%B4%B0%E0%B4%A5%E0%B4%BF%E0%B4%95%E0%B5%8D%E0%B4%B7%E0%B5%87%E0%B4%A4%E0%B5%8D%E0%B4%B0%E0%B4%82.jpg)
अरणमूल केरल राज्य की राजधानी से १२८ कि.मी दूर स्थित स्थान है। यह पम्पा नदी के तट पर स्थित है। यहां प्रसिद्ध अरणमूल मंदिर भगवान श्री पार्थसारथी (श्रीकृष्ण) को समर्पित है, जो यहां अपने प्रिय सखा अर्जुन के सारथी बने हुए दर्शाये गए हैं। इस मंदिर की अनुमानित आयु लगभग १७०० वर्ष है।
पाल्लियोदम (सर्प नौका)[संपादित करें]
अरणमूल की विशेष सर्प-नौका (चुण्डन वल्लम) को पाल्लियोदम कहते हैं। इन्हें भक्तगण यहां के पूज्य आराध्य भगवान पार्थसारथी के दिव्य वाहन के रूप में चलाते हैं। ये पाल्लियोदम पम्पा नदी के विभिन्न तटीय भागों के विभिन्न करों से आती हैं। प्रत्येक में सामान्यतः ४ चालक, गायक एवं सहायक होते हैं। नौका को स्वर्णिम झालरों एवं पताकाओं से सजाया जाता है। इनके मध्य में दो से तीन सजी-धजी छतरियाँ भी लगी रहती हैं।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ द केरल कंपैनियन, केरल पर्यटन विभाग, पृष्ठ ४०